करो बीज ने भजो भगवत ने बीज व्रत कथा लिरिक्स

करो बीज ने भजो भगवत ने,
सकल कला मोटो संसार,
दसवे निकलंक देव अवतरे,
बीज शनि दिन रूड़ो वार जे।।



सुरसती माय शारदा ने सिंवरू,

विद्या ने विनायक दातार,
सुददबुध्द वाणी म्हाने सनापो जणा,
विद्या दो म्हाने भली विचार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



सतजुग में प्रहलादे सिद्दा,

सतसिद्दी रत्नादे नार,
उड़न रिखेशर सार बताई,
जणा पाँच करोड़ तिरगा उण री भार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



त्रेताजुग राजा हरिचन्द सिद्दा,

सत सिद्दी तारादे नार,
गुरु विलूचन सार बताई,
जणा सात किरोड तिरिया उण री भार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



दवा जुग राजा जोटल सिद्दा,

सत सिद्दी ओ द्रोपद नार जे,
गुरु दुर्वासा सार बताई,
जणा नौ करोड़ तिरगा वारी भार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



कलजुग में राजा बलवंत सिद्दा,

सत सिद्दी सिंज्यादे नार,
गुरु सुक्रासा सार बताई,
जणा बारह किरोड तीरगा वारी भार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



सतजुग को व्रत बताओ सिद्द स्वामी,

तिरगुण को त्रेतायुग सार,
दवा जुग व्रत दाखो देवजी,
जणा कौन व्रत हैं कलु मझार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



सतजुग व्रत अमावस हरिजन,

त्रेताजुग में पूनम सार,
दवाजुग व्रत एकादशी कहिए,
बीज व्रत हैं कलु मझार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



सतजुग तीर्थ बताओ सिद्द स्वामी,

तिरगुण तीर्थ त्रेता जुग सार,
दवाजुग तीर्थ दाखो देवजी,
कौन तीर्थ हैं कलु मझार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



सतजुग तीर्थ नरहर रो कहिए,

त्रेताजुग हो गया जी सार,
दवाजुग तीर्थ बद्रीनारायण,
गंगा तीर्थ हैं कलु मझार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



सतजुग दाग बताओ सिद्द स्वामी,

तिरगुण दाग त्रेता जुग सार,
दवा जुग दाग देवजी,
दाखो कौन दाग हैं कलु मझार,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



सतजुग दाग पवन रो हरिजन,

त्रेताजुग में जल रो दाग,
दवाजुग दाग अगन रो कहिए,
घोर दाग हैं कलु मझार,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



को नामी सुणो बीज महिमा,

नेम राखो नर ने नार,
करणी रा पाँचू पांडु सुधरया,
पर उपकारी लंगिया पार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



पापी पाप लेवे पेले रो,

घर सु करे नई एक लिगार,
कोडिया कलंगी दुःख दालदरी,
कोणा खोड़ा करे किरतार,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



पंथ में जाय पीछे पिछतावे,

खबर विहुणा खाँचे भार,
साँचे पंथ री सार नहीं जाणे,
जणा नुगरो रे सिर दुणो भार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



उदकियो दान घरा में राखे,

दउ पर जले पनी मझार,
उदकिये दान री सार नी जाणे,
वे जावेला दिखण दवार,
करो बीज ने भजों भगवत ने।।



नारद भगतो सू अंतर नहीं,

जो मेरे भगतो उ अंतर राखे,
वो नर नारगी में जाई।

आ लक्ष्मी म्हारे अर्ध शरीरी,
भगतो री आ दासी,
अड़सठ तीर्थ म्हारे गुरूसा रे चरणा,
कोटि गंग अर काशी।



जागे साध तो मैं भी जागू,

सोवे साध तो सोऊ,
जो कोई मेरे साध दुखावे,
जड़ा मूल से खोऊँ।

सन्त जिमाय ने मैं जब जीमु,
सन्त पौढ़ाय ने मैं सोऊ,
मेरे भगतो री निंदिया करत हैं,
करोड़ विघ्न कर देऊ।



जो म्हारा हरिजन आगे हुआ,

वा भगतो री मने आसा,
जो म्हारा हरिजन हरि गुण गावे,
मैं जठे लिया निवासा।

म्हारा हरिजन उजड़ धावे,
गेह कर पंथ बताऊ,
म्हारे तन री ले पीताम्बर,
मैं छाया करतो जाऊं।



मोहे भजे सन्तो री सेवा,

तोहि परम् पद पाई,
सुन्दरदास री आईं विनती,
आप श्री मुख गाई।
मीठा दान करे मन शुध्द सु,
आत्म देव फले एक सार,
गुरु ईश्वर ने एक कर पूजे,
हो जावे भव पेली पार,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



शनिवार री बीज चोई चोरे जोड़े,

उजमिया फले हैं अनंत अपार,
बोह गुणी बीज सुघड़ नर जाणे,
हो जावे भव पेली पार,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



गाया घृत गंगा फल नहाए,

सिखिया फल हैं अनंत अपार,
कथिया पाप शरीरा रा जावे,
सुणिया सब ही कर्म कट जाय,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



गरू भागू भव सागर तारे,

महाधर्म सु उतरो पार,
अख जी कथे बीज री मेहमा,
मुलू केवे फले एक सार,
करो बीज ने भजो भगवत ने।।



दशवे निकलंक देव अवतरे,

बीज शनि दिन रूड़ो वार,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
काशी में एक जात जुलाहा,
निर्गुण भक्ति चलाई,
प्रीत काज हरी पीछे डौले,
बालद आन ढलाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे
जीव परम पद पाई।।



साँची भक्ति धन्ना जी री कहीजे,

बिना बोया घर लाइ,
बीज ले संतों ने बांट्या,
नाथ निरंजन ने निपजाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई।।



साँची भक्ति नीमा जी री कहिजे,

मरतक गऊ जिवाई,
देवल फेरियो दूध पिलायो,
हित करी छान छवाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई।।



साँची भक्ति पीपा जी री कहिजे,

चंदवा री आग बुझाई,
सैन भक्त रो सांसो मेट्यो,
आप बण्या हरि नाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई।।



प्रीति काज अर्जुन रथ हाँक्यों,

तीनों लोक बड़ाई,
बिना प्रीत रावण को देखो,
राज विभीषण पाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई।।



भीलनी रा बेर सुदामा रा चावल,

प्रीती से भोग लगाईं,
दुर्योधन रा मेवा त्याग्या,
साग विदुर घर खाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई।।



साध संगत भक्ता री महिमा,

मो मुख वरनी ना जाई,
अग्रदास दासन के दासा,
आप श्री मुख गाई,
जग में साँची रे राम सगाई,
कर्म कटे चौरासी छूटे,
जीव परम पद पाई,
जग में साँची रे राम सगाई।।



करो बीज ने भजो भगवत ने,

सकल कला मोटो संसार,
दसवे निकलंक देव अवतरे,
बीज शनि दिन रूड़ो वार जे।।

गायक – 1008 सन्त श्री शंकर जी मोकलाव।
प्रेषक – रामेश्वर लाल पँवार।
आकाशवाणी सिंगर।
9785126052


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