घणा की आंखियां ऊंची वेगी फाटी की फाटी रेगी

घणा की आंखियां ऊंची वेगी,

दोहा – आणो पड़े भगवान को,
जब भक्त करें है पुकार,
श्रीयादे ऊबी द्वार पे,
ध्यान करो करतार।



घणा की आंखियां ऊंची वेगी,

फाटी की फाटी रेगी,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।



श्रीयादे कुम्हारी हलगे,

सिद्धेश्वर को कालजो,
राम भजिया ने मुड़ो दुखायो,
कठे परोगियो सांवरो,
छोड़ माला ने फांक परी तुं,
बात थारी झुठी वेगी,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।



गेले जातां धुम मचाई,

प्रहलाद को फेटको,
ले तलवारी हामे आयो,
छोड़ केड़ो तुं रामको,
सांचों ईश्वर हिरणाकुश है,
भोली की भोली रेगी,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।



श्रीयादे मुख बाण छुटियो,

नारायण का नाम को,
ड़ोल गयो सिंहासन हरि को,
तीर लगियो छै जोर को,
ऊब ताल में घोर अंधेरों,
बात अचम्भा की वेगी,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।



नारायण सिंहासन छोड़ियो,

मने जाणो पड़े जरुर,
मतकर देरी नाथ नारायण,
सुण अरजीया वेजा गरुर,
पलभर माहीं जीव ऊबारियां,
सुण श्रीया का बोल की,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।



दुष्ट प्रहलादा देख अचम्भो,

सांची श्रीयादे लिदी ठान,
भव तारण को दीनो सहारो,
धन्य श्रीयादे संत महान,
भज नारायण ‘रतन’ भाया,
बात किताबा में छपगी,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।



घणा की आखियां ऊंची वेगी,

फाटी की फाटी रेगी,
राम भजियो मां बैठ आंगणे,
आवड़े हत्या वेगी।।

गायक व रचना – पं. रतनलाल प्रजापति।
निर्देशक – नारायण लाल प्रजापति।


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