सिद्ध योगी मेरे पागल पीर का रुका से हरियाणे में

मोटी मोटी आंख गजब की,
बैठ्या भगमे बाने में,
सिद्ध योगी मेरे पागल पीर का,
रुका से हरियाणे में।।



दूर दूर ते भगत हो बाबा,

तेरे दर पे आवे से,
हलवा पूरी खीर खांड का,
तेरा भोग लगावे से,
परसाद चढ़ावे सकर का,
मन आनंद आज्या खाने में,
सिद्ध योगी मेरे पागल पिर का,
रुका से हरियाणे में।।



सबकी लाज बचाने आला,

तू ही एक सहारा से,
भगत तने लागे से प्यारे,
तू भगतां का प्यारा से,
थारी दया होज्या ते बाबा,
खिलजा चमन बिराने में,
सिद्ध योगी मेरे पागल पिर का,
रुका से हरियाणे में।।



तेरे धाम की हो मेरे बाबा,

के के करू बढ़ाई हो,
जो भी आवे सच्चे मन ते,
काटे विपदा सारी हो,
घनी गजब की करामात से,
बाबा तेरे ठिकाने पे,
सिद्ध योगी मेरे पागल पिर का,
रुका से हरियाणे में।।



टेक चंद पे हो मेरे बाबा,

दया दृष्टि हो थारी,
मोहित शर्मा दर पे पड़ा से,
सुनले ने विनती म्हारी,
तेरे नाम का भजन सुनाके,
आनंद आजा गाने में,
सिद्ध योगी मेरे पागल पिर का,
रुका से हरियाणे में।।



मोटी मोटी आंख गजब की,

बैठ्या भगमे बाने में,
सिद्ध योगी मेरे पागल पीर का,
रुका से हरियाणे में।।

गायक / प्रेषक – मोहित शर्मा।
8708393756
लेखक – टेक चंद खरक पंडवा।


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